Ayushmann Khurrana (Pen Drawing)
मुखौटे ही तो चहरे हैं ।
अन्दर का राम जला दिया,
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं।
अपनी ही आवाज़ सुन ना पाएं,
पूर्ण रूप से बहरे हैं।
मन की नदी उफान पा ना सकी,
पर हम दिखते कितने गहरे हैं।
ये मुखौटे कोई उतार ना ले,
लगा दिए लाखों पहरे हैं।
चहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चहरे हैं ।
Poem by - Ayushmann Khurrana
Excellent 👍
ReplyDeleteThank you 😊
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